गुप्त राजवंश या गुप्त साम्राज्य

प्राचीन भारत का एक भारतीय साम्राज्य था जिसने लगभग संपूर्ण उत्तर भारत पर शासन किया, इतिहासकारों द्वारा इस अवधि को भारत का स्वर्ण युग माना जाता है।

गुप्त काल 319ई.से550ई.तक:

गुप्त साम्राज्य (चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी) का विस्तार और विकास, गुप्त शासकों की शक्तिशाली और संगठित नीति के कारण संभव हुआ। उनकी विस्तार नीति मुख्य रूप से सैन्य विजय, विवाह संबंधों, कूटनीति और संस्कृति के प्रसार पर आधारित थी। यहाँ प्रमुख गुप्त शासकों और उनकी विस्तार नीतियों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

1:  गुप्त कुंसाडों के सामंत थे इनके राजनीतिक व सैन्य व्यवस्था का प्रभाव गुप्तों पर भी पड़ा इस गुप्त साम्राज्य का संस्थापक श्री गुप्त को माना जाता है 

2. चंद्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.):

राज्य विस्तार की नीति:

 चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त साम्राज्य की नींव रखी और एक संगठित साम्राज्य की स्थापना की। उसने लिच्छवि राज्य की राजकुमारी कुमारादेवी से विवाह किया, जिसके द्वारा उसे महत्वपूर्ण सैन्य और राजनीतिक समर्थन मिला। इससे उत्पन्न पुत्र समुद्रगुप्त जिसे लिच्छवी दौहित कहा गया।

प्रमुख उपलब्धि: उसने मगध, प्रयाग, और पाटलिपुत्र के क्षेत्रों पर अधिकार किया, जो गुप्त साम्राज्य के प्रारंभिक विस्तार का आधार बना।

2. समुद्रगुप्त (335-375 ई.):

विजय अभियान:

 समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। उसने कई महत्वपूर्ण विजय अभियान किए। उत्तर भारत के राजाओं को उसने पराजित कर अपने साम्राज्य में शामिल किया, जबकि दक्षिण भारत के राजाओं को अपने अधीन कर दिया।

किंतु ध्यान देना जरूरी है की समुद्रगुप्त यूरोप के नेपोलियन से अलग दिखाई देता है क्योंकि यह कभी पराजित नहीं हुआ वहीं नेपोलियन बोनापार्ट विभिन्न जगह पराजित हुआ जैसे स्पेन में, पराजित हुआ रूसी अभियान असफल रहा वाटरलू के लड़ाई में पराजित हुआ इस तरह नेपोलियन आंध्रसमराजयवादी था।

समुद्रगुप्त की विभिन्न नीतियां:

 1: आर्यावर्त के विरुद्ध _राज्यप्रश्वोदरण की नीति ।

2: सीमांत राज्यों के विरुद्ध _सर्वदानग्यांकरण की नीति।

3: आठविक जातियों के विरुद्ध _परिचारिकीकृति नीति।

4: भारत में विदेशी शाशको के विरुद्ध _कन्योपयन की नीति।

5: दक्षिण राज्यों के विरुद्ध _ग्राहणमोक्षणुगृह की नीति।

 उसने उत्तर भारत के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की और दक्षिण के क्षेत्रों पर प्रभुत्व स्थापित किया।

समुद्रगुप्त ने कांची, पल्लव, चोल, और पांड्य राज्यों के शासकों पर विजय प्राप्त की, लेकिन उन्हें आत्मनिर्भर छोड़ दिया।

समुद्रगुप्त ने कूटनीति और मित्रता की नीति अपनाई और दक्षिण भारत के शासकों के साथ गठबंधन बनाए।

3: रामगुप्त  

इसके ऐतिहासिकता पर प्रश्न चिन्ह है।

4. चंद्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.):

राज्य विस्तार:

 चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य ने अपना चरम देखा। उसने शक राजाओं को पराजित कर पश्चिम भारत के मालवा, गुजरात और सौराष्ट्र के क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।

विवाह नीति:

 चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी बेटी का विवाह वाकाटक राजवंश के शासक से किया, जिससे उसे दक्षिण भारत में मित्रता और समर्थन मिला।

 इसके काल में सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के साथ-साथ कला और विज्ञान का भी उन्नयन हुआ।

चंद्रगुप्त के दरबार में नौ रत्न रहते थे।

1. कालिदास_नाटक काव्य 

2. अमर सिंह_शब्दकोश 

3. शंकु_वास्तुकला 

4. धनवंतरी_चिकित्सक 

5. क्षपरक_ज्योतिष 

6. बेतालभट्ट_जादू 

7. वररुचि_व्याकरण 

8. घटकपर_काव्य संबंधी 

9. वराहमिहिर_खगोल 

5. कुमारगुप्त प्रथम (413-455 ई.):

सैन्य और धार्मिक नीति: कुमारगुप्त प्रथम ने साम्राज्य की सीमा को बनाए रखा और शांति स्थापित की। उसने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो शिक्षा और बौद्ध धर्म के लिए प्रसिद्ध हुआ।

हूण आक्रमण: कुमारगुप्त के शासनकाल के अंत में हूणों का आक्रमण हुआ, लेकिन उसने इसे सफलतापूर्वक नियंत्रित किया।

6. स्कंदगुप्त (455-467 ई.):

हूणों से संघर्ष: स्कंदगुप्त ने हूणों के आक्रमण को रोका और साम्राज्य की सुरक्षा की। यह उसका प्रमुख सैन्य अभियान था।

साम्राज्य की रक्षा: उसने प्रशासनिक सुधार किए और आर्थिक रूप से साम्राज्य को मजबूत किया।

7. नरसिंह गुप्त बालादित्य:

इसने हुड़ शासक मिहिरकुल को पराजित किया था।

8. भानुगुप्त :

के मध्य प्रदेश में एरन अभिलेख से गुप्त काल के बारे में जानकारी मिलती है।

निष्कर्ष 

गुप्त साम्राज्य की विस्तार नीति में विजयों के साथ-साथ कूटनीति, विवाह संबंध और धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय भी शामिल थे। गुप्त शासकों ने न केवल एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और शिक्षा को भी उच्चतम शिखर तक पहुंचाया।

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