संदेश

नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय शास्त्रीय नृत्य

चित्र
भारतीय शास्त्रीय नृत्य कितने प्रकार के होते हैं कब कैसे और क्यों किया जाता है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अद्भुत और समृद्ध हिस्सा है। यह नृत्य कला के माध्यम से भावनाओं, विचारों और कहानियों को प्रस्तुत करने का एक माध्यम है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य कुल मिलाकर आठ प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है। ये नृत्य शास्त्रीय मान्यताओं पर आधारित होते हैं, जिन्हें "नाट्य शास्त्र" (भरतमुनि द्वारा रचित) और अन्य ग्रंथों में वर्णित किया गया है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रकार: (1) भरतनाट्यम (तमिलनाडु) उत्पत्ति:_ तमिलनाडु के मंदिरों में देवताओं की आराधना के लिए। उद्देश्य:_ भक्ति और आध्यात्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति। विशेषता:_ मूर्तियों जैसी मुद्राएँ, अंग संचालन, और अभिव्यक्ति पर जोर। (2) कथक (उत्तर भारत) उत्पत्ति:__ उत्तर भारत में, खासकर मंदिरों और दरबारों में। उद्देश्य:__ कथाओं और पौराणिक कथाओं को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करना। विशेषता:__ पैर की थाप, घूमने की कलात्मकता, और त्वरित फुटवर्क। (3) कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश) उत्पत्ति:__ आंध्र प्रदेश के गाँव कुचिपुड़...

शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23/24

चित्र
भारतीय संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23/24का विस्तार। अर्थ: शोषण के विरुद्ध अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार के शोषण से सुरक्षा प्रदान करना है। यह उन प्रथाओं को प्रतिबंधित करता है जो मनुष्यों की गरिमा को कम करती हैं। इस अधिकार का सार प्रत्येक व्यक्ति, विशेषकर समाज के कमजोर वर्गों की गरिमा, स्वतंत्रता और कल्याण की रक्षा करना है। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि उन्हें किसी भी तरह के दबाव, शोषण या अमानवीयकरण का सामना न करना पड़े। भारत में शोषण के विरुद्ध अधिकार: शोषण के विरुद्ध अधिकार भारत के संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 23 से 24 में निहित शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित विस्तृत प्रावधान विभिन्न प्रकार के शोषण के विरुद्ध एक मजबूत सरंक्षक के रूप में कार्य करते हैं। ये प्रावधान मिलकर व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखते हैं। शोषण के विरुद्ध अधिकार:_ भारतीय संविधान के तहत प्रावधान मानव तस्करी और बलात् श्रम का निषेध (अनुच्छेद 23): य...

1971से 1977 का भारत और वर्तमान स्थिति

चित्र
1971से 1977 भारत की स्थिति और आपातकाल के बाद कांग्रेस का पतन जनता पार्टी का उदय का कारण एक नजर में विस्तार से। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहां पर जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार देश का शासन चलाती है, लेकिन जब देश में कुछ विशेष परिस्तिथियाँ पैदा हो जातीं हैं, तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा भी करनी पड़ती है. भारतीय संविधान में आर्टिकल 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध दिए गए हैं. आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है और सभी राज्य, केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं। राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में लगाया जाता है, जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है. भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था और यह 21 महीनों तक चला था। क्या था पूरा मामला? आपातकाल लगने से पहले देश का राजनीतिक माहौल: इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करन...

धार्मिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 25/26/27/28 का विस्तार

चित्र
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25.26.27.28 धर्म के प्रति क्या क्या अधिकार देते हैं विस्तार से: भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को अनुच्छेद 25 से 28 के तहत सुनिश्चित किया गया है। ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करते हैं। इन अनुच्छेदों का विस्तार निम्नलिखित है। अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता विवरण : यह अनुच्छेद हर व्यक्ति को किसी धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है। सीमाएं : यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। विशेष बातें : यह अनुच्छेद धार्मिक कृत्यों को व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से करने की स्वतंत्रता देता है। यह राज्य को सामाजिक सुधार के लिए हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है, जैसे कि अछूत प्रथा का उन्मूलन। अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों का प्रबंधन विवरण : यह अनुच्छेद धार्मिक समुदायों या संस्थाओं को निम्नलिखित अधिकार देता है: धार्मिक और धार्मिक मामलों का प्रबंधन। धर्म के प्रचार के लिए संपत्ति का अधिग्रहण और प्रबंधन। अपने धर्म से जुड़े संस्थान स्थापित करना और उनका ...

BDL भारत डायनमिक लिमिटेड

चित्र
BDL क्या है और क्या इसके कार्य है वर्तमान में किसपे कार्य किया जा रहा है ? BDL (Bharat Dynamics Limited) भारत डायनेमिक्स लिमिटेड भारत की अग्रणी मिसाइल और गोला-बारूद प्रणाली निर्माताओं में से एक है। वर्ष 1970 में भारत में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड की स्थापना की गई थी। आज भारत डायनेमिक्स लिमिटेड वैश्विक स्तर पर स्थापित कुछ उद्योगों में से एक बन गया है, जिसके पास भारतीय सशस्त्र बल के लिए पानी के नीचे के हथियारों, निर्देशित मिसाइलों, संबद्ध रक्षा उपकरणों और हवाई उत्पादों की आपूर्ति और निर्माण के लिए अत्याधुनिक सुविधाएँ हैं। भारत डायनेमिक लिमिटेड का मुख्यालय हैदराबाद में है और यह उत्तर प्रदेश में अपनी इकाइयाँ स्थापित करेगा - भारत डायनेमिक लिमिटेड झांसी जो भारत के उत्तरी भाग में छठी और पहली इकाई है। मुख्य कार्य: मिसाइल उत्पादन (सतह से हवा, हवा से हवा, और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल आदि)। हथियार प्रणालियों का विकास और रखरखाव। भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अत्याधुनिक रक्षा उपकरण तैयार करना। रूस से पैंटसीर समझौता हाल ही में रूस और भारत के बीच "पैंटसीर एयर डिफेंस सिस्टम" पर चर्चा और संभावित समझ...

ब्रिक्स की स्थापना कब हुई और इसका मुख्यालय कहां है?

चित्र
जीएस रिसर्च रिपोर्ट के साथ, “ब्रिक्स” का जन्म हुआ। 2001 में, गोल्डमैन सैक्स के वैश्विक निवेश अनुसंधान प्रभाग ने "बेहतर वैश्विक आर्थिक ब्रिक्स का निर्माण " नामक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उन चार देशों के लिए संक्षिप्त नाम गढ़ा गया जो विश्व अर्थव्यवस्था को नया आकार देंगे - ब्राजील, रूस, भारत और चीन। 2000 और 2009 के बीच, उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की गति पहली बार विकसित देशों से आगे निकल गई। 2001 की गोल्डमैन सैक्स इकोनॉमिक रिसर्च रिपोर्ट में चार तेजी से बढ़ते उभरते बाजार देशों पर विशेष रूप से भविष्य के वैश्विक आर्थिक विकास के प्रमुख चालकों के रूप में ध्यान केंद्रित किया गया: ब्राजील, रूस, भारत और चीन। "बेहतर वैश्विक आर्थिक ब्रिक्स का निर्माण" के साथ, एक नया शब्द निवेश की भाषा में शामिल हो गया। जिम ओ'नील द्वारा लिखे गए इस पेपर में, जो उस समय ग्लोबल इकनोमिक रिसर्च के प्रमुख थे, यह अनुमान लगाया गया था कि आने वाले 10 वर्षों में, विश्व जीडीपी में "ब्रिक्स" - विशेष रूप से चीन - का वजन काफी बढ़ जाएगा, और इस प्रकार चार देशों में राजकोषीय और मौद्रिक नीति का व...

चाणक्य की विचारधारा

चित्र
  चाणक्य की विचारधारा प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली दृष्टिकोण है, जो राजनीति, समाज, अर्थशास्त्र और शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर आधारित है। चाणक्य का जीवन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि उनकी नीतियां और सिद्धांत आज के समय में भी लागू हो सकते हैं। 1. राजनीति और राज्यप्रशासन चाणक्य की राजनीति पर आधारित मुख्य सिद्धांत उनकी काव्यात्मक रचनाओं में मिलते हैं, विशेषकर अर्थशास्त्र और नीति शास्त्र में। उनके अनुसार, एक कुशल शासक को अपने राज्य का संचालन करते समय निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। राजनीतिक विवेक और अवसरवादिता: चाणक्य का मानना था कि राजनीतिज्ञ को हमेशा अवसर का सही समय पर लाभ उठाना चाहिए और किसी भी स्थिति में विवेक का त्याग नहीं करना चाहिए। शक्ति का संतुलन:  उन्होंने यह भी कहा था कि शक्ति का संतुलन बनाए रखना और अपने प्रतिद्वंद्वियों से सतर्क रहना राज्य के लिए जरूरी है। कूटनीति का महत्व:  चाणक्य की नीतियों में कूटनीति का विशेष स्थान था। उनका मानना था कि हर कार्य को बुद्धिमत्ता और योजना के साथ करना चाहिए, न कि केवल बल के सहारे। 2. आर्थिक नीति...

मैकियावेली कि विचारधारा

चित्र
  मैकियावेली: यूरोप का वो चाणक्य जिसने कहा शासकों का कुटिल होना अच्छा है! मैक्यावली विचारधारा, जिसे मुख्य रूप से निकोलो मैक्यावली के द्वारा प्रस्तुत किया गया था, राजनीति और शक्ति के क्षेत्र में एक यथार्थवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। उनके सिद्धांतों का समन्वय प्राचीन से लेकर आधुनिक समय तक किया जा सकता है, क्योंकि उनके विचारों का प्रभाव राजनीति, सत्ता, और नैतिकता पर गहरा पड़ा है। प्राचीन काल में मैक्यावली के सिद्धांतों का समन्वय: प्राचीन समय में सत्ता की प्राप्ति और उसके संरक्षण के लिए नैतिकता और धर्म के मुद्दों को लेकर विचार किए जाते थे। किंग्स और शासक युद्ध, छल, और कूटनीति का उपयोग करते थे, लेकिन मैक्यावली ने इसे एक व्यवस्थित तरीके से सिद्धांतबद्ध किया। उदाहरण के लिए, प्राचीन ग्रीस और रोम में सत्ता के लिए संघर्ष, जैसे कि रोमन साम्राज्य के सामरिक और कूटनीतिक निर्णय, मैक्यावली के विचारों से मेल खाते थे। उन्होंने "राजनीतिक यथार्थवाद" की बात की थी, यानी राजनीति में नैतिकता की बजाय शक्ति और प्रभाव की बात की जाती है। मध्यकालीन युग और मैक्यावली: मध्यकाल में चर्च और धार्मिक संस...

सुकरात

चित्र
  सुकरात का जीवन परिचय और ज्ञान का सिद्धांत: सुकरात (469 ई.पू. - 399 ई.पू.) एक महान ग्रीक दार्शनिक थे, जिनका योगदान पश्चिमी दर्शन के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। उनका जन्म एथेंस, ग्रीस में हुआ था। वह प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों के गुरु रहे, और उनकी शिक्षाएं तर्क और नैतिकता पर आधारित थीं। सुकरात ने मौखिक परंपरा में शिक्षा दी, क्योंकि उन्होंने कोई भी लेखन कार्य नहीं किया; उनके शिष्य प्लेटो ने उनके विचारों को संवादों के रूप में दर्ज किया। सुकरात के शब्दों में, __हर किसी की राय होती है, लेकिन ज्ञान केवल दार्शनिक के पास होता है। जीवन परिचय: सुकरात का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता एक मूर्तिकार थे, और उनकी माता एक दाई थीं। उन्होंने अपना जीवन सादगी से बिताया और कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागे। वह एथेंस की गलियों में लोगों से जीवन और नैतिकता के बारे में सवाल पूछते रहते थे, जिससे उनके विचारों का प्रसार हुआ। कार्य एवं विचारधारा: मौलिक शिक्षा: सुकरात ने यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए संवाद (Dialectic) और तर्क (Logic) का सहारा लिया। उनकी शिक्षण पद...