धार्मिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 25/26/27/28 का विस्तार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25.26.27.28 धर्म के प्रति क्या क्या अधिकार देते हैं विस्तार से:

भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को अनुच्छेद 25 से 28 के तहत सुनिश्चित किया गया है। ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करते हैं। इन अनुच्छेदों का विस्तार निम्नलिखित है।

अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता

  • विवरण: यह अनुच्छेद हर व्यक्ति को किसी धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है।
  • सीमाएं: यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
  • विशेष बातें:
    1. यह अनुच्छेद धार्मिक कृत्यों को व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से करने की स्वतंत्रता देता है।
    2. यह राज्य को सामाजिक सुधार के लिए हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है, जैसे कि अछूत प्रथा का उन्मूलन।

अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों का प्रबंधन

  • विवरण: यह अनुच्छेद धार्मिक समुदायों या संस्थाओं को निम्नलिखित अधिकार देता है:
    1. धार्मिक और धार्मिक मामलों का प्रबंधन।
    2. धर्म के प्रचार के लिए संपत्ति का अधिग्रहण और प्रबंधन।
    3. अपने धर्म से जुड़े संस्थान स्थापित करना और उनका संचालन करना।
  • सीमाएं: यह भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।

अनुच्छेद 27: धर्म के प्रचार के लिए करों का भुगतान न करना

  • विवरण: यह अनुच्छेद कहता है कि किसी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • महत्व:
    1. यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को मजबूत करता है।
    2. राज्य धार्मिक प्रचार के लिए कर संग्रह नहीं कर सकता।

अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षा और शैक्षिक संस्थान

  • विवरण: यह अनुच्छेद सरकारी और सरकार द्वारा वित्तपोषित शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान करने पर रोक लगाता है।
  • मुख्य प्रावधान:
    1. पूरी तरह सरकारी वित्तपोषित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
    2. वे संस्थान जो राज्य निधि का उपयोग नहीं करते, वे धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं।
    3. निजी संस्थानों में धार्मिक शिक्षा के लिए सहमति आवश्यक है।

महत्व

  1. यह सुनिश्चित करता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य बना रहे।
  2. व्यक्ति और समुदाय को उनकी धार्मिक पहचान और स्वतंत्रता की रक्षा प्रदान करता है।
  3. सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के हित में सीमित अधिकार देकर सामंजस्य स्थापित करता है।

विस्तार से _

धर्म की स्वतंत्रता:

परिचय:

प्रत्येक नागरिक को अधिकार है कि वह अपनी पसंद के धर्म का प्रचार-प्रसार, अभ्यास करने के लिये स्वतंत्र है।
यह सरकार के हस्तक्षेप के भय के बिना सभी को अपने धर्म का प्रचार करने के अधिकार का अवसर प्रदान करता है।
लेकिन साथ ही राज्य द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि वह देश के अधिकार क्षेत्र के भीतर सौहार्दपूर्ण ढंग से इसका अभ्यास करे।

आवश्यकता:

भारत विभिन्न धर्मों का पालन करने वाले और विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों का देश है। प्यू रिसर्च सेंटर के वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, 4,641,403 लोग ऐसे हैं जो छह प्रमुख धर्मों- हिंदू धर्म, जैन धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और ईसाई धर्म के अलावा अन्य धर्मों का पालन करते हैं।
इसलिये इतनी विविधतापूर्ण आबादी के साथ विभिन्न धर्मों और विश्वासों का पालन करते हुए प्रत्येक धर्म की आस्था के संबंध में अधिकारों की रक्षा और उन्हें सुरक्षित करना आवश्यक हो जाता है।

धर्मनिरपेक्षता:

1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को जोड़ा गया। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के नाते इसका कोई राज्य धर्म नहीं है जिसका अर्थ है कि यह किसी विशेष धर्म का पालन नहीं करता है।
अहमदाबाद सेंट जेवियर्स कॉलेज बनाम गुजरात राज्य (1975) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ न तो ईश्वर विरोधी है और न ही ईश्वर समर्थक। यह सिर्फ यह सुनिश्चित करता है कि राज्य के मामलों में ईश्वर की अवधारणा को समाप्त करते हुए धर्म के आधार पर किसी को अलग नहीं किया जाए।

धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित कुछ प्रावधान:

अनुच्छेद 25: यह धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है, जिसमें किसी धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार शामिल है।
अनुच्छेद 26: यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
अनुच्छेद 27: यह किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिये करों के भुगतान के रूप में स्वतंत्रता निर्धारित करता है।
अनुच्छेद 28: यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा अथवा धार्मिक पूजा में उपस्थिति होने की स्वतंत्रता देता है।

धर्मनिरपेक्षता, भारत बनाम संयुक्त राष्ट्र:

भारत धर्म के प्रति 'तटस्थता' और 'सकारात्मक भूमिका' की अवधारणा का अनुसरण करता है। राज्य धार्मिक सुधार लागू कर सकता है, अल्पसंख्यकों की रक्षा कर सकता है तथा धार्मिक मामलों पर नीतियों का निर्माण कर सकता है।
अमेरिका धर्म के मामलों में 'अहस्तक्षेप' के सिद्धांत का पालन करता है। राज्य धार्मिक मामलों में कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।

धर्म की स्वतंत्रता पर प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ:

बिजोय इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य (1986):
इस मामले में यहोवा के साक्षी संप्रदाय के तीन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने यह दावा करते हुए राष्ट्रगान गाने से इनकार कर दिया कि यह उनके विश्वास के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह निष्कासन मौलिक अधिकारों और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

आचार्य जगदीश्वरानंद बनाम पुलिस आयुक्त, कलकत्ता (1983):

न्यायालय के निर्णय के अनुसार, आनंद मार्ग कोई अलग धर्म नहीं बल्कि एक धार्मिक संप्रदाय है और सार्वजनिक सड़कों पर तांडव का प्रदर्शन आनंद मार्ग का एक आवश्यक अभ्यास नहीं है।

एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघ (1994):

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, मस्जिद इस्लाम की एक आवश्यक प्रथा नहीं है, अतः एक मुसलमान खुले स्थान पर कहीं भी नमाज (प्रार्थना) कर सकता है।

राजा बिराकिशोर बनाम उड़ीसा राज्य (1964):

इसमें जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1954 की वैधता को चुनौती दी गई थी क्योंकि इसने पुरी मंदिर के मामलों के प्रबंधन के प्रावधानों को इस आधार पर अधिनियमित किया था कि यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन था। न्यायालय ने कहा कि अधिनियम केवल सेवा पूजा के धर्मनिरपेक्ष पहलू को विनियमित करता है, अतः यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन नहीं है।

निष्कर्ष:

अनुच्छेद 25 से 28 तक भारतीय संविधान का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। यह अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए सामाजिक सद्भाव को बनाए रखते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19/20/21/22 का अधिकार और समाप्ति

मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण

ISRO का नया मिशन 4.0