1971से 1977 का भारत और वर्तमान स्थिति


1971से 1977 भारत की स्थिति और आपातकाल के बाद कांग्रेस का पतन जनता पार्टी का उदय का कारण एक नजर में विस्तार से।

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहां पर जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार देश का शासन चलाती है, लेकिन जब देश में कुछ विशेष परिस्तिथियाँ पैदा हो जातीं हैं, तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा भी करनी पड़ती है. भारतीय संविधान में आर्टिकल 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंध दिए गए हैं. आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है और सभी राज्य, केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं।

राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में लगाया जाता है, जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है. भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था और यह 21 महीनों तक चला था।

क्या था पूरा मामला?

आपातकाल लगने से पहले देश का राजनीतिक माहौल:

इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने से भारत के बैंकों पर अमीर घरानों का कब्ज़ा ख़त्म होने और ‘प्रिवी पर्स’ (राजपरिवारों को मिलने वाले भत्ते) खत्म करने जैसे फैसलों से इंदिरा की इमेज ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में बन गई थी।

अपने सलाहकार और हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा दिए गए ‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने देश में इंदिरा की छवि गरीबों के मसीहा के रूप में पक्की की थी. अब लोगों को लग रहा था कि सिर्फ इंदिरा ही गरीबों के लिए लड़ रही है।

यही कारण है कि जब मार्च 1971 में देश में आम चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी. कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई थी।

इस चुनाव में इंदिरा गाँधी भी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोक सभा सीट से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था।

राजनरायन:


राजनारायण उत्तर प्रदेश के वाराणसी के प्रखर समाजवादी नेता थे उनके इंदिरा गांधी से कई मसलों पर नीतिगत मतभेद थे इसलिए वे कई बार उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े और हारते रहे वर्ष 1971 में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और यहीं से शुरू होता है देश में राजनीतिक उथल पुथल का दौर.

कोर्ट का निर्णय इंदिरा के खिलाफ:

राजनारायण के कोर्ट में प्रसिद्द वकील शांतिभूषण थे हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था यह मामला राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ नाम से जाना जाता है।

वकील शांतिभूषण ने सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग सिद्ध करने के लिए यह उदाहरण दिया कि प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर ने राष्ट्रपति द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था, जो कि सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का पुख्ता सबूत था।

उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है।

अदालत ने अगले 6 साल तक उनके कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा में जाने का रास्ता भी नहीं बचा था, अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था_
हालांकि अदालत ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए ‘नई व्यवस्था अर्थात नया प्रधानमन्त्री’ बनाने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दे दिया था।

समस्या को हल करने के क्या प्रयास हुए थे?

1: ज्ञातव्य है कि इस समय देश में ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ का माहौल था. ऐसे माहौल में इंदिरा के होते किसी और को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता था. साथ ही इंदिरा अपनी पूरी पार्टी में किसी पर भी विश्वास नहीं करती थीं।
2: इस संकट के समय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंप दें।
3: जब प्रधानमंत्री आवास पर यह चर्चा चल रही थी उसी समय वहां संजय गांधी आ गए. उन्होंने अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर सलाह दी कि वे इस्तीफा न दें. उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि यदि उन्होंने प्रधानमंत्री का पद किसी और को दिया तो फिर वह व्यक्ति इसे नहीं छोड़ेगा और आपके द्वारा पार्टी में बनायीं गयी पकड़ ख़त्म हो जाएगी।

इंदिरा गांधी अपने बेटे के तर्कों से सहमत हो गई और उन्होंने तय किया कि वे इस्तीफा देने के बजाय 3 हफ़्तों की मिली मोहलत का फायदा उठाते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी।
इस केस की सुनवाई जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने की थी. जज ने अपने फैसले में कहा कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दे दी ,लेकिन कहा कि वे अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं।

जयप्रकाश नारायण की भूमिका:

कोर्ट की उठापटक के बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आंदोलन भी उग्र हो रहा था. बिहार में इस आंदोलन को हवा दे रहे थे जयप्रकाश नारायण_
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी, जयप्रकाश ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता के अंश " सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" का नारा बुलंद किया था।
जयप्रकाश ने विद्यार्थियों, सैनिकों, और पुलिस वालों से अपील कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें, क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमन्त्री पद से हटने को बोल दिया है. बस इसी रैली के आधार पर इंदिरा ने आपातकाल लगाने का फैसला किया था. इसके अलावा इन कारणों ने भी इंदिरा को आपातकाल के लिए मजबूर किया था।
1. इंदिरा के खिलाफ पूरे देश में जन आक्रोश बढ़ रहा था. इसमें छात्र और सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हो गए थे।

2. कोर्ट के आदेश ने इंदिरा की हालात को पंगु बना दिया था, क्योंकि इंदिरा अब संसद में वोट नहीं डाल सकती थी और उनको पार्टी के किसी नेता पर भरोसा भी नहीं था।
3. इसके अलावा इंदिरा को लगा कि जयप्रकाश के आवाहन पर सेना तख्ता पलट कर सकती है।

इन हालातों में इंदिरा को आपातकाल लगाने का सबसे बड़ा बहाना जयप्रकाश द्वारा बुलाया गया असहयोग आन्दोलन था. इसी आधार पर इंदिरा ने 26 जून, 1975 की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि जिस तरह का माहौल (सेना, पुलिस और अधिकारियों के भड़काना) देश में एक व्यक्ति अर्थात जयप्रकाश नारायण के द्वारा बनाया गया है ,उसमें यह जरूरी हो गया है कि देश में आपातकाल लगाया (National Emergency in India) जाये ताकि देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके।
इस प्रकार देश में पहला राष्ट्रीय आपातकाल (first National Emergency in India)25 जून 1975 में लागू किया गया था, जो कि 21 महीने अर्थात 21 मार्च 1977 तक चला था, उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे।

जनता पार्टी का सत्ता में आने का रास्ता खुलने लगा 1975 और 1977 के बीच मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण सहित कई विपक्षी नेताओं और कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और जेल में डाल दिया गया, आपातकाल की स्थिति ने प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर सीमाएं लगा दी थीं और कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई तेज कर दी थी।

तब हुआ था बड़ा विपक्षी जुटान:

मार्च 1977 में आपातकाल हटाए जाने से पहले, इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में नए सिरे से चुनाव का आह्वान किया तो उन्होंने अन्य विपक्षी नेताओं को भी जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. इसकी पृष्ठभूमि में जनवरी 1977 में नई दिल्ली में जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह थे. भारतीय जनसंघ, भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ), और सोशलिस्ट पार्टी उन समूहों में से थे जो पार्टी की स्थापना के लिए एक साथ आए थे।

विपक्षी एकता को मिली सफलता ।

मार्च 1977 में चुनाव के लिए मतदान हुआ. जनता गठबंधन ने इंदिरा गांधी को अपमानजनक हार दी. इसमें सभी विपक्षी दल शामिल थे और इसका एकमात्र लक्ष्य कांग्रेस शासन को उखाड़ फेंकना था।

विपक्षी दल एक साथ क्यों आए? 

लोकतंत्र को बचाए रखने की लड़ाई 1977 के चुनावों का मुख्य एजेंडा था. जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने के मकसद से चुनाव लड़ा. उनका अभियान कांग्रेस शासन के गैर-लोकतांत्रिक चरित्र और उस दौरान सत्तारूढ़ शासन द्वारा विभिन्न ज्यादतियों पर केंद्रित था. उन्होंने कई मुद्दे उठाए जिनमें घरेलू मुद्दे, आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस पर सेंसरशिप और उस समय की गई जबरन नसबंदी शामिल थी. वे देश में लोकतंत्र बहाल करने के वादे के साथ लोगों से जुड़ने में सक्षम थे।

इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा आम चुनाव के लिए जयप्रकाश नारायण ने दिया था. इस नारे ने आपातकाल के दौर में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर फेंका और देश में जनता पार्टी के शासन की शुरुआत हुई. सत्ता हासिल करने के अपने अभियान में, कांग्रेस ने एक शक्तिशाली केंद्र सरकार की आवश्यकता पर जोर दिया।

स्वतंत्र भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी

भारत की आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया. 41.32 प्रतिशत वोट शेयर के साथ, जनता पार्टी ने भारी जीत हासिल की और 405 सीटों में से 295 सीटों पर कब्जा कर लिया. कुल 542 सीटों में से जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 330 सीटें जीतीं।

चुनावी नतीजों का नया पैटर्न

इन्हीं चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 492 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 34.52 प्रतिशत वोटों के साथ केवल 154 सीटों पर जीत हासिल की. चुनाव के नतीजों ने कुछ दिलचस्प भौगोलिक मतदान पैटर्न पेश किए. जनता पार्टी को भारत के दक्षिण में बहुत कम सीटें ही हासिल हुईं. इसके विपरीत, कांग्रेस के 154 सदस्यों में से केवल दो उत्तर में हिंदी पट्टी से थे, और उनमें से 92 सासंद चार दक्षिणी राज्यों से आए थे।

कांग्रेस पार्टी उत्तर भारतीय राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में एक भी सीट जीतने में असमर्थ रही थी. जनता पार्टी, विपक्षी दलों का एक संयोजन, जिसने बीएलडी, भारतीय लोक दल के प्रतीक पर चुनाव लड़ा था, ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया और देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार की स्थापना की. कांग्रेस की विनाशकारी हार के बाद, 21 मार्च, 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई के लिए जगह बनाने के लिए प्रधान मंत्री के रूप में अपना पद छोड़ दिया, जिन्होंने 24 मार्च को पद की शपथ ली और भारत के पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री बने।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19/20/21/22 का अधिकार और समाप्ति

मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण

ISRO का नया मिशन 4.0