संगम काल की राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था

संगम राजव्यवस्था और प्रशासन:

संगम काल के दौरान वंशानुगत राजतंत्र का प्रचलन था।

संगम युग के प्रत्येक राजवंश के पास शाही प्रतीक था। जैसे- चोलों के लिये बाघ, पाण्ड्यों के लिये मछली और चेरों के लिये धनुष।

राजा की शक्ति पर पाँच परिषदों का नियंत्रण था, जिन्हें पाँच महासभाओं के नाम से जाना जाता था।

मंत्री (अमैच्चार), पुरोहित (पुरोहितार), दूत (दूतार), सेनापति (सेनापतियार) और गुप्तचर (ओर्रार) थे।

सैन्य प्रशासन का संचालन कुशलतापूर्वक किया गया जाता था और प्रत्येक शासक के साथ एक नियमित सेना जुड़ी हुई थी।

राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि राजस्व था, जबकि विदेशी व्यापार पर सीमा शुल्क भी लगाया गया था।

युद्ध में लूटी गई संपत्ति को भी राजकोषीय आय माना जाता था।

डकैती और तस्करी को रोकने के लिये सड़कों और राजमार्गों की उचित व्यवस्था को बनाए रखा गया था।

संगम सोसाइटी:

पुरुनानरु नामक ग्रंथ में चार वर्गों तुड़ियन, पाड़न, पड़ैयन और कड़म्बन का उल्लेख मिलता है।

पुरुनानरू नामक ग्रंथ में चार वर्गों का उल्लेख मिलता है -जैसे- शुड्डुम वर्ग (ब्राह्मण एवं बुद्धिजीवी वर्ग), अरसर वर्ग (शासक एवं योद्धा वर्ग), बेनिगर वर्ग (व्यापारी वर्ग) और वेल्लाल वर्ग (किसान वर्ग)।

संगम कविताओं में भूमि के पाँच मुख्य प्रकार पाए जाते हैं - मुल्लै (देहाती), मरुदम (कृषि), पालै (रेगिस्तान), नेथल (समुद्रवर्ती) और कुरिंचि (पहाड़ी)।

प्राचीन आदिम जनजातियाँ जैसे- थोडा, इरुला, नागा और वेदर इस काल में पाई जाती थीं।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इस युग में दास-प्रथा का आभाव था।

संगम युग के दौरान महिलाओं की स्थिति:

संगम युग के दौरान की महिलाओं की स्थिति को समझने के लिये संगम साहित्य में काफी जानकारी उपलब्ध है।

महिलाओं का सम्मान किया जाता था और उन्हें बौद्धिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति थी। अवेल्लियार, नच्चेलियर, और काकईपाडिन्यार, जैसी महिला कवयित्री थीं, जिन्होंने तमिल साहित्य में उत्कर्ष योगदान दिया।

महिलाओं को अपन जीवन साथी चुनने की अनुमति थी लेकिन विधवाओं का जीवन दयनीय था।

समाज में उच्च स्तर पर सती प्रथा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है।

धर्म:

संगम काल के प्रमुख देवता मुरुगन थे, जिन्हें तमिल भगवान के रूप में जाना जाता है।

दक्षिण भारत में मुरुगन की पूजा सबसे प्राचीन मानी जाती है और भगवान मुरुगन से संबंधित त्योहारों का संगम साहित्य में उल्लेख किया गया था।

संगम काल के दौरान पूजे जाने वाले अन्य देवता मयोन (विष्णु), वंदन (इंद्र), कृष्ण, वरुण और कोर्रावई थे।

संगम काल में नायक पाषाण काल की पूजा महत्त्वपूर्ण थी जो युद्ध में योद्धाओं द्वारा दिखाए गए शौर्य की स्मृति के रूप में चिह्नित किये गए थे।

संगम युग में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी प्रसार दिखाई पड़ता है।

संगम युग की अर्थव्यवस्था:

कृषि मुख्य व्यवसाय था और चावल सबसे आम फसल थी।

हस्तकला में बुनाई, धातु के काम और बढ़ईगीरी, जहाज़ निर्माण और मोतियों, पत्थरों तथा हाथी दाँत का उपयोग करके आभूषण बनाना शामिल था।

संगम युग की महत्त्वपूर्ण विशेषता इसका आंतरिक और बाहरी व्यापार था।

सूती और रेशमी कपड़ों की कताई एवं बुनाई में उच्च विशेषज्ञता प्राप्त थी। पश्चिमी देशों में विशेष रूप से उरियुर में बुने हुए सूती कपड़ों की बहुत मांग थी।

पुहार शहर विदेशी व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया, क्योंकि कीमती सामान वाले बड़े जहाज़ इस बंदरगाह में प्रवेश करते थे।

वाणिज्यिक गतिविधि के लिये अन्य महत्वपूर्ण बंदरगाह तोंडी, मुशिरी, कोरकई, अरिकमेडु और मरक्कानम थे।

ऑगस्टस, टाइबेरियस और नीरो जैसे रोमन सम्राटों द्वारा जारी किये गए कई सोने और चाँदी के सिक्के तमिलनाडु के सभी हिस्सों में पाए गए हैं जो समृद्ध व्यापार का संकेत देते हैं।

संगम युग के प्रमुख निर्यात में सूती कपड़े और मसाले जैसे- काली मिर्च, अदरक, इलायची, दालचीनी और हल्दी के साथ-साथ हाथी दाँत के उत्पाद, मोती और बहुमूल्य रत्न आदि प्रमुख थे।

व्यापारियों द्वारा आयातित वस्तुओं में घोड़ा, सोना, चाँदी और मीठी शराब आदि प्रमुख थे।

संगम युग का अंत:

तीसरी शताब्दी के अंत तक संगम काल धीरे-धीरे पतन की तरफ अग्रसर होता गया।

तीन सौ ईस्वी पूर्व से छह सौ ईस्वी पूर्व के बीच कालभ्रस ने तमिल देश पर कब्ज़ा कर लिया था, इस अवधि को पहले के इतिहासकारों द्वारा एक अंतरिम या 'अंधकार युग' कहा जाता है

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19/20/21/22 का अधिकार और समाप्ति

मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण

ISRO का नया मिशन 4.0