रामसर स्थल
भारत में रामसर स्थल: वर्तमान स्थिति (2024)
भारत जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है। यहां की नदियां, झीलें, और दलदल न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इन्हें संरक्षण के लिए वैश्विक पहचान भी मिली है। इस कड़ी में भारत में रामसर स्थलों का विशेष महत्व है। ये स्थल जल-जीवों, पक्षियों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संरक्षण क्षेत्र हैं।
रामसर स्थल क्या हैं?
रामसर स्थल वे आर्द्रभूमि (Wetlands) हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय महत्व का माना जाता है। इन्हें 1971 में ईरान के रामसर शहर में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के तहत मान्यता दी जाती है। इस सम्मेलन का उद्देश्य आर्द्रभूमियों का संरक्षण और उनके सतत उपयोग को बढ़ावा देना है।
भारत में रामसर स्थलों की संख्या:
दिसंबर 2024 तक भारत में कुल 85 रामसर स्थल हैं। ये स्थल 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं। भारत के पास कुल 1,33,866 वर्ग किलोमीटर आर्द्रभूमि क्षेत्र है, जिसमें से रामसर स्थलों का महत्वपूर्ण योगदान है।
रामसर स्थलों का वितरण:
भारत में सबसे अधिक रामसर स्थल तमिलनाडु में हैं, जहां कुल 18 स्थल हैं। पंजाब में 9 और उत्तर प्रदेश में 10 स्थल हैं।
इन स्थलों में से कुछ प्रमुख हैं:
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान)
चिल्का झील (ओडिशा)
लोकटक झील (मणिपुर)
वुलर झील (जम्मू-कश्मीर)
सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान (हरियाणा)
सुंदरवन (पश्चिम बंगाल)
नवीनतम जोड़े गए स्थल
हाल ही में तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में कई स्थलों को जोड़ा गया है। इनमें तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित वडुवरु झील और जम्मू-कश्मीर की शालबुग आर्द्रभूमि प्रमुख हैं।
रामसर स्थलों का महत्व:
जैव विविधता का संरक्षण: ये स्थल दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए आश्रयस्थल हैं।
जलवायु नियंत्रण: आर्द्रभूमि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में सहायक होती है।
स्थानीय समुदायों का समर्थन: ये स्थल मछली पालन और अन्य आजीविका गतिविधियों का प्रमुख स्रोत हैं।
चुनौतियां और समाधान
चुनौतियां:
अतिक्रमण और शहरीकरण
प्रदूषण
अवैध शिकार और कृषि विस्तार
समाधान:
स्थानीय समुदायों को जागरूक करना
कड़े कानून लागू करना
पर्यावरणीय पर्यटन को बढ़ावा देना
निष्कर्ष:
भारत में रामसर स्थलों की संख्या बढ़ने से यह स्पष्ट है कि देश आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। यह हमारी जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि हम सभी मिलकर इन स्थलों का संरक्षण करेंगे, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी प्राकृतिक धरोहर होगी।
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