ट्रंप का नाटो पर बयान
ट्रंप नाटो छोड़ने को क्यों बोले रक्षा बजट का 2./. कौन कौन देश देते हैं क्या कारण है।क्या है नाटो, क्या मकसद रहा?
डोनाल ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति काल के दौरान नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) को छोड़ने की बातें की थीं, जिनके पीछे कई कारण थे।
नाटो के वित्तीय बोझ:
ट्रंप का मुख्य तर्क था कि अमेरिका नाटो के खर्च में बहुत अधिक योगदान दे रहा है, जबकि अन्य सदस्य देशों ने अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने की जिम्मेदारी नहीं ली। उन्होंने यह मांग की कि अन्य सदस्य देश भी अपने रक्षा बजट को 2% के लक्ष्य तक बढ़ाएं।
कौन कौन से देश कम पैसे देते हैं
जर्मनी की जीडीपी ज्यादा होने के बाद भी वो डिफेंस पर पैसे खर्च नहीं कर रहा. नाटो का अपना डेटा कहता है कि जर्मनी ने रक्षा पर 1.57% हिस्सा ही लगाया. सबसे कम पैसे स्पेन, बेल्जियम और लग्जमबर्ग खर्च कर रहे हैं. नाटो ने जीडीपी का इतना हिस्सा सैनिकों की नियुक्ति, ट्रेनिंग और हथियारों पर लगाने कहा था ताकि अगर कभी देशों पर हमला हो तो वे तैयार रहे. बड़े हमले की स्थिति में अमेरिका पर सारा बोझ आ सकता है।
अमेरिकी नेतृत्व का सवाल:
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका नाटो में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है, लेकिन अन्य सदस्य देशों के समर्थन की कमी के कारण यह स्थिति संतोषजनक नहीं है। उन्होंने इसे एक असमान साझेदारी के रूप में देखा।
सुरक्षा और रणनीतिक चिंताएँ:
ट्रंप का मानना था कि नाटो की रणनीतियाँ अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमेशा अनुकूल नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि अमेरिका को अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करना चाहिए।
गठबंधन के प्रभाव:
ट्रंप ने नाटो के सदस्यों के बीच आपसी सहयोग की कमी पर भी चिंता जताई। उन्होंने यह महसूस किया कि नाटो सदस्य देशों के बीच सहयोग की कमी अमेरिका को कमजोर कर सकती है।
अतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव:
ट्रंप के प्रशासन ने वैश्विक राजनीति में अमेरिका की भूमिका को पुनः परिभाषित करने की कोशिश की। उन्होंने अधिक 'अमेरिका पहले' नीति अपनाई, जिसमें अन्य देशों के साथ संबंधों को फिर से देखने की आवश्यकता बताई।
ट्रंप की नाराजगी की अपनी वजह है
दरअसल अमेरिका फिलहाल इस गुट के कुल खर्च का लगभग 70 फीसदी हिस्सा देता है. इसका भी कारण है. साल 2014 में सभी नाटो सदस्यों ने मिलकर तय किया था कि वे अपनी जीडीपी का कम से कम 2% डिफेंस पर लगाएंगे. यही वो न्यूनतम खर्च है, जिसे बिल भी कहा जाता है. ज्यादातर देश इस मामले में पीछे हैं, जबकि अमेरिका ने अपनी जीडीपी का सबसे लगभग साढ़े 3 प्रतिशत डिफेंस पर खर्च किया. इसके बाद पोलैंड, ग्रीस और यूके का नंबर रहा।
ओबामा भी जता चुके नाखुशी:
बीते कई सालों से कुछ देश आर्थिक हालातों के हवाले से अपना हिस्सा नहीं लगा रहे थे. इसी बात पर अमेरिकी लीडर नाराज रहने लगे. ट्रंप से काफी पहले से ये असंतोष चला आ रहा है. मसलन, सत्तर के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन नाटो के लिए यूरोपीय योगदान पर नाराजगी दिखाते हुए कहा था कि अमेरिका उनका सपोर्ट करेगा लेकिन अपनी रक्षा का जिम्मा उन्हें खुद लेना होगा. इसी तरह बराक ओबामा ने भी यूरोपीय देशों से डिफेंस बजट बढ़ाने को कहा था।
क्या ट्रंप के चाहनेभर से यूएस दूर हो जाएगा नाटो से?
तकनीकी तौर पर ये मुमकिन नहीं. वहां की प्रोसेस के मुताबिक, किसी भी इंटरनेशनल संधि को खत्म करने के लिए राष्ट्रपति को सीनेट से मंजूरी चाहिए होती है. ये सहमति भी कम से कम दो-तिहाई हो तभी ऐसा किया जा सकता है. हालांकि विदेश नीति पर राष्ट्रपति के पास काफी सारे अधिकार हैं, जैसे वो एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए सीनेट की सहमति के बगैर भी बड़े फैसले ले सकता है।
निष्कर्ष:
ट्रंप की नाटो को छोड़ने की बातें उनके प्रशासन की नीति और उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो कि अमेरिका के लिए बेहतर समझौते और समानता की मांग पर आधारित थीं। हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप की यह भाषा और दृष्टिकोण नाटो जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी संगठन के लिए चिंता का विषय बन गए थे।
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